पैसे और अहम की हवस ने इंसानियत तो छोड़िए, गुरु शिष्य परंपरा तक को दांव पर लगा डाला!
इंसान की इंसानियत तब खत्म हो जाती है, जब वह पैसों को इंसानियत से ज्यादा तवज्जो देने लगता है,कहीं न कहीं लोग भूल जाते हैं कि, धन अर्जन करना शायद आसान है, लेकिन इज़्जत कमाना, उतना ही मुश्किल।
बताते चलें कि पिछले दिनों जालौन जिले के रामपुरा ब्लॉक के सिद्धपुरा गाँव के यूपीएस सिद्धपुरा विद्यालय का मामला भले ही खत्म हो गया हो लेकिन प्रधानाध्यापक विनोद दुबे की पीड़ा ख़त्म नहीं हुई और शायद कभी ख़त्म होगी भी नहीं। पिछले दिनों उन पर जो भी आरोप लगाए गए, वो पूरी तरह से बेबुनियाद साबित हो चुके हैं, लेकिन उनके मुताबिक उनकी ज़िंदगी भर की कमाई हुई इज़्जत भी कहीं गुम हो गई। कहते हैं एक शिक्षक समाज का दर्पण होता है, विनोद जी जैसे ईमानदार शिक्षक के आत्मसम्मान को जो चोट पहुंची है, उसके ज़िम्मेदार ग्राम प्रधान श्रीमती सर्वेश देवी और उनके पति रविन्द्र प्रताप सिंह उर्फ़ लला हैं। एक प्रधान होने के नाते, जिनका दायित्व समाज की बुराइयों को ख़त्म करना है, वही समाज के अंदर घृणा और गलत संदेश फैला रहे हैं।
ध्यान देने वाली बात तो ये है कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माने जाने वाली मीडिया भी गलत का ही साथ दे रही है। चंद पैसों के लिए लोगों ने अपने आप को ही नहीं, पत्रकारिता को भी बेच दिया है, लेकिन आपको बता दें कि पत्रकारिता और कलम में वो ताकत है जो अच्छे अच्छों को उनकी औकात दिखा सकता है। पत्रकार सतीश भदौरिया ने विनोद दुबे जी के बारे में जो कुछ भी लिखा, वो बिना किसी सबूत और गवाहों के अपने मन से लिख दिया। ऐसी ओछी हरकत करने के लिए शायद ये खुद को माफ़ कर भी लेंगे लेकिन कानून और ईश्वर कभी उन्हें माफ़ नही करेंगे।
एक शिक्षक और छात्र के बीच जो गुरु शिष्य की परंपरा हमारे देश में आदरणीय मानी जाती है, उस परंपरा पर कीचड़ उछाल कर इन लोगों ने ये तो साबित कर दिया कि, इनके लिए विद्या का कोई मोल नहीं है, लेकिन जल्दी ही यही विद्या इन्हें इनके किए की सजा ज़रूर देगी। प्रशासन से बस यही विनती है कि विनोद दुबे को उनके पद पर उसी गरिमा के साथ वापस बैठाया जाए और विद्यालय का काम सुचारू रूप से चलता रहे।