रेउसा/सीतापुर. विकास खण्ड रेउसा में थोड़ी सी बारिस होते ही रेउसा के इलाको में जलभराव की समस्या सिर चढ़कर बोलने लगी। मानसून के दौर में उत्पन्न होने वाले हालातों को लेकर लोग चिंतित हो उठे। जलभराव की यह समस्या कोई नई नहीं है। हर साल उभरती है। लोग इस समस्या के चलते घरों में कैद होने को विवश हो जाते हैं। हालात तब अधिक बिगड़ जाते हैं जब लगातार कई दिन तक बारिश का दौर जारी रहने पर पानी लोगों के घरों में घुस जाता है। नालों की सफाई तो कभी करायी ही नहीं जाती है । जलभराव की कई वजह हैं लेकिन उन पर ध्यान नहीं दिया गया। फलत: लोगों को इस समस्या से जूझना विवशता है।
• जलनिकासी के लिए बने नालों का ढाल भी सही नहीं है। फलस्वरूप पानी की निकासी सही ढंग से नहीं हो पाती है। बरसात के दिनों में पानी उल्टा लौटने लगता है। ऐसा नहीं है कि सभी नालों का ढाल बेढब है बल्कि पुराने समय के बने नालों ठीक है जो नए नाले बनाए गए हैं उनके निर्माण में ढलान सही नहीं है। इसके अलावा कुछ नाले ऐसे हैं जहां बरसात के दिनो में क्षमता से अधिक पानी आता है।
• जलभराव की समस्या की एक अहम वजह पॉलीथिन का प्रयोग है। पॉलीथिन सड़कों के जरिए नालियों में और नालियों के जरिए बड़े नालों में पहुंचकर एकत्र होती रहती है। पॉलीथिन का प्रयोग तो बंद नहीं कराया जा सका लेकिन यह पॉलीथिन नालियों के जरिए नालों में न पहुंचे इसके इंतजाम किए जाने चाहिए। नालियों की नियमित रूप से सफाई नहीं हो पाती है। यदि नालियां नियमित रूप से साफ की जाती रहें तो पॉलीथिन को नालियों से नालों में पहुंचने से रोका जा सकता है।
•जलभराव की समस्या के विकट होने का प्रमुख कारण उस पर ध्यान नहीं दिया जाना है। जब बरसात आती है तब अधिकारी जागते हैं। जलभराव होने लगता है तब बचाव करना सूझता है। बरसात के तीन चार माह होते हैं। यदि शेष माह में इसके निदान के उपाय खोजे नहीं जाते
• जलभराव की प्रमुख वजह नवविकसित क्षेत्रों में जलनिकासी के कोई इंतजाम न होना है। आज भी रेउसा के कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर घरों से निकलने वाला पानी वहीं पर स्थित तलैया में भरता है। ऐसे बहुत से ऐसे कारण की। परन्तु यह किसी को दिखाई नहीं देता है