प्राथमिक विद्यालय के बच्चो के सपनों को साकार कर रहे शिक्षक/ शिक्षिकाएं
सीतापुर/ रेउसा सरकारी प्राइमरी स्कूलों का नाम आते ही हमारे सामने एक जर्जर बिल्डिंग उजाड़ स्कूल की तस्वीर सामने आती है। जहां ना सुविधाएं होती है ना अच्छी पढ़ाई, लेकिन ये प्राथमिक विद्यालय आपकी सोच बदल देगा। कॉन्वेंट स्कूलों को मात देता ये स्कूल दूसरे सरकारी स्कूलों के लिए नजीर बन गया है। सीमित संसाधनों में भी अगर कोई कुछ करना चाहे तो कैसे कर सकता है,ये बात सिद्ध की है विकास खंड रेउसा के प्राथमिक विद्यालय बम्हनावां- द्वितीय ने। इस विद्यालय में ऐसा बहुत कुछ देखने को मिला जो इसे एकदम खास बनाता है। यहां लैपटॉप से पढ़ाई होती है। छोटे बच्चे लैपटॉप से कविताएं और एबीसीडी सीखते हैं तो बड़े बच्चे इसी लैपटॉप से अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं। हालांकि ये स्कूल हमेशा से ऐसा नहीं था। स्कूल की सूरत बदली है यहां की प्रधानाध्यापिका ने।
नई-नई नौकरी लगे तो हर कोई यही सोचता है कि आराम की नौकरी मिले, लेकिन यहां तो इसका बिलकुल उल्टा हो रहा था। एक अध्यापिका अपनी तनख्वाह से भी बच्चों और स्कूल के लिए खर्च करने में संकोच नहीं करती। सरकारी स्कूल का नाम सुनते ही ज़ेहन में बस एक ही बात आती है, अरे वही न जहां पर पढ़ाई नहीं होती, वहां तो बच्चे कभी आते ही नहीं, टीचर भी बस खानापूर्ति करके चले जाते हैं। और जहां पर न कोई सुविधाएं होती हैं न ही पढ़ाई।
संगीता यादव प्रधानाध्यापिका, आकांक्षी सुमन सहायक अध्यापिका, लक्ष्मी देवी सहायक अध्यापिका, आरती रस्तोगी शिक्षामित्र ने इस स्कूल का कायाकल्प किया है। शुरू-शुरू में जहां गिनती के बच्चे स्कूल आते थे वहीं अब हर क्लास बच्चों से भरी होती है। सभी शिक्षिकाओं ने सामुदायिक सहभागिता से अपने विद्यालय को संवारा सहेजा । बच्चों को पढ़ाई के साथ हैंडीक्राफ्ट और मिट्टी के गुलदस्ते, मूर्तियां और पेंटिंग बनाना भी सिखाया जाता है।शिक्षा प्रदान करने के साथ- साथ यहां पाठ्येतर गतिविधियां भी लगातार कराई जाती रहती है जिससे बच्चों की रुचि पढ़ाई के साथ साथ अन्य चीजों में भी लगी रहे।खास विशेषता यह है की समस्त सांस्कृतिक कार्यक्रम विद्यालय के द्वारा ही संपादित किये जाते है।
स्कूल में तय वक्त पर बच्चों को साफ सुथरा मिड-डे मील मिलता है। जिसके लिए तीन रसोइए हैं। खास बात ये हैं ये खाना बनाने वाली इन महिलाओं को भी स्कूल के किचन का काम निपटाने के बाद शिक्षिकाओं द्वारा पढ़ाकर हस्ताक्षर करना सिखा दिया गया। संगीता यादव बताती हैं हम लोगों को इस तरह से पढ़ाते देख आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने भी गतिविधियों के साथ बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। इससे स्कूल में स्टॉफ की कमी भी नहीं खलती है। बम्हनावां- प्राथमिक विद्यालय द्वितीय के स्टॉफ से जिले में बैठे अधिकारी भी काफी खुश हैं।
स्कूल की दीवार बन गई बच्चों की किताब स्कूल की दीवारों पर अंग्रेजी और हिंदी के अक्षरों की पेंटिंग बनायी गयी है, जिससे बच्चों को सीखने में और आसानी होती है। स्कूल के नाम से डरने वाले बच्चों के आंखों में अभी सपने दिखने लगे हैं कोई टीचर बनना चाहता है तो कोई पुलिस में जाना चाहता है।
अब स्कूल में बच्चों के हर दिन की शुरुआत प्रार्थना के साथ ही उस दिन की ताज़ा खबरों के साथ होती है, एक बच्चा उस दिन की बड़ी ख़बरों को पढ़कर सभी को सुनाता है। स्कूल में लगे पौधों को बच्चे ही संभालते हैं, कब कौन से पौधे में फूल आएगा, किसे कब पानी देना है बच्चे सब जानते हैं। यहां बच्चे छुट्टी में भी स्कूल नहीं छोड़ना चाहते हैं।