आल्हा-ऊदल ने की थी मां सोनासरि की स्थापना
सीतापुर सीतापुर के सेवता में मां सोनासरि देवी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। प्रेम शुक्ला, पुजारी मां सोनासरि देवी मंदिर ने बताया माता की मूर्तियों को विध्याचल से आल्हा-उदल यहां लाए थे। तब से मां सोनासरि देवी यहां मंदिर में विराजमान हैं। प्रसिद्ध आल्हा खंड में सोनासरि देवी का मां सोनवा के नाम से वर्णन है। श्रद्धालु पूरे नवरात्र माता का भव्य श्रृंगार करते हैं। सुबह-शाम आरती एवं पूजा होती है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।
इतिहास. मान्यता है कि आल्हा काल में सेवता को बिरहगढ़ के नाम से जाना जाता था। यहां के राजा हीर सिंह और वीर सिंह हुआ करते थे, जो दोनों सगे भाई थे। इनसे आल्हा-उदल का युद्ध हुआ था। गांजर की लड़ाई आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। बुजुर्ग बताते हैं कि दोनों तरफ की सेनाओं के हजारों लोग मारे जा चुके थे, लेकिन युद्ध का परिणाम नहीं निकल रहा था। ऐसे में आल्हा की पत्नी सोनवा के सपने में रात को मां देवी ने दर्शन दिए कहा, विध्याचल से मेरी मूर्ति को लाकर यहां स्थापित करें, तभी इस युद्ध का परिणाम निकलेगा। आल्हा-उदल विध्याचल से सोनासरि देवी मां का अंश लाकर सेवता में स्थापित किया था, तब विजय मिली।
मंदिर की विशेषता. इतिहास और रहस्यों को समेटे सोनासरि देवी मां के मंदिर में पिडी स्वरूप माता रानी विराजमान हैं। इस मंदिर के मुख्य द्वार पर रथ की आकृति बनी है। इसमें रथ खींचते चार घोड़े और उस पर अर्जुन के साथ सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण विराजमान हैं। मंदिर के कुछ दूर एक चक्रतीर्थ है। मंदिर के द्वितीय द्वार पर यज्ञशाला है। अमावस्या पर विशाल मेला लगता है। मां सोनासरि मंदिर में पिडी स्वरूप में विराजमान हैं। यह स्वरूप अपने आप में विशिष्ट है। आल्हा-ऊदल काल के समय से माता यहां विराजमान हैं। इस मंदिर में आस पास जिलों के श्रद्धालु आते हैं।
माता का स्वरूप कल्याणकारी है। शरण में भक्ति भाव से आने वाले श्रद्धालुओं पर माता की कृपा बरसती है। इस प्राचीन मंदिर में दर्शन व पूजन करना परम सौभाग्य की बात है। माता सभी का कल्याण करती हैं।