सीतापुर/बिसवा. पत्थर शिवाला मंदिर को बिसवां को आत्मा कहा जाता है। सावन माह में भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक करने के लिए भक्तों भीड़ उमड़ती है।
मंदिर के खम्भों पर चित्ताकर्षक नक्काशी एवं संगमरमर की मूर्तियां श्रद्वालुओं के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। मन्दिर के मध्य भाग में स्थापित विशालकाय सफेद शिवलिंग अन्य किसी स्थान पर नहीं दिखते।
पत्थर शिवालय वास्तव में पंचायतन मन्दिर है। इसमें पूरब की ओर विष्णु और लक्ष्मी जी की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। वहीं दक्षिण की ओर सूर्य भगवान की मूर्ति, पश्चिम के कोने पर श्रीगणेश की संगमरमर की मूर्ति व उत्तरी कोने पर मां गौरी की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। साथ ही विशालकाय नन्दी की काले संगमरमर की मूर्ति, हनुमान व भैरव बाबा विराजमान हैं।
यहां वर्षभर श्रीमद्भागवत एवं रामचरित मानस के पाठ सम्पन्न होते रहते हैं।
उल्लेखनीय है कि ठाकुर दरियाव सिंह के वंश में ठाकुर विशेश्वर बक्श सिंह हुए। उनके ऊपर उत्तम संस्कारों से शिव जी की असीम कृपा हुई जिससे उन्होंने धर्मशाला, विद्यालय सहित श्री विश्वनाथ जी का पंचायतन मन्दिर स्थापित करने का संकल्प लिया।
इस संकल्प की पूर्ति न होते देख और अपने शरीर के त्याग का समय नजदीक देख अपनी सहधर्मणी के हाथ में यह काम सौंपा। उनकी पतिव्रता पत्नी रामकली देवी ने संकल्प पूर्ति के कारण शरीर यथाशक्ति रखा,
अंत में उस आशा से निराश हो अपने पितातुल्य ज्येष्ठ भ्राता प्रयाग इलाहाबाद निवासी चौधरी महादेव प्रसाद का आश्रय लेकर संकल्पपूर्ति के लिए ट्रस्टनामा लिखकर सब ट्रस्टियों पर भार देकर पतिलोक को अपनी पवित्र जन्मभूमि तीर्थराज प्रयाग क्षेत्र से गमन किया।
अनन्तर सभी ट्रस्टियों का अति उद्योग व उनके भ्राता का भी अहंकारयुक्त उद्योग हुआ। अन्त में हताश होकर ईश्वर के शरणापन्न हुए, तब आशुतोष भगवान ने अपने एक सेवक के ऊपर इनका मन आकर्षित किया जोकि उनके गुरू भाई पंडित मातादीन शुक्ल थे।
शिव जी की महामाया की प्रेरणा से इनका भी चित इस संकल्प पूर्ति पर इतना आकर्षित हुआ कि इन्होंने छह माह में पूर्ति की प्रतिज्ञा की। साठ हजार मन पत्थर प्रयाग इलाहाबाद से बिसवां ले जाना व लगाना दुष्कर प्रतीत होता था। कारण कि वह सौ योजन के तिर्यक मार्ग से आने थे।
परमात्मा ने असम्भव को सम्भव कर दिखलाया,यही जो बारह वर्ष से पूरा न हुआ था वह छह माह में हुआ। मन्दिर पर लगे स्तम्भ पर उकेरे कवित्त में लिखा गया है कि
"श्री सम्वत् 1900 के ऊपर 76 आयो।
मास बैसाख में गुन सुदिन विचारों है।
शुभ दिन भृगुवार अरू अक्षय तृतीया के
दिवस प्रात: समय विप्रन ने वेद उच्चारो है।
लक्ष्मी नारायण, सूर्य, गिरजा, गणपति समेत
भक्तन सदा शिव आनन्द सम्भारो है।
कहत दीनदयाल ऐसो परमानन्द जगदाधार।
विश्वेश्वर नाथ वन मन्दिर में पधारो है।"
"सवा सौ पंडितों ने स्थापित किया शिवलिंग"
मान्यता है कि इस मंदिर के शिवलिंग को स्थापित कराने के लिए राजस्थान से डेढ़ सौ पंडितों को लाया गया था। जिनके द्वारा मृतुन्जय जाप कर इस विशाल शिवलिंग को स्थापित किया गया था। यह मंदिर पत्थर शिवाला के नाम से भी जाना जाता है। यह पत्थर शिवाला मंदिर अपनी भव्यता, स्थापत्य, कला और विशाल शिवलिंग के कारण श्रद्धालुओं की विशेष आस्था और श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है।