एडोल्फ हिटलर और लुडविग विटगेन्सटाइन ये दोनों बचपन में एक ही क्लास में पढ़ते थे। हिटलर के बारे में सब लोग कुछ न कुछ जानते ही हैं। लेकिन कम ही लोग विटगेन्सटाइन के नाम से वाकिफ हैं।
विटगेन्सटाइन ने जुबान यानी भाषा पर काम किया। भाषा को लेकर इस शख्स ने जो अपना फलसफा तैयार किया उसे पूरी दुनिया में दर्शनशास्त्र में सबसे आला दर्जे का काम माना गया है। जुबान के फलसफे को लेकर उनका कोई सानी नहीं है। उन्होंने अपने तरीके से दुनिया की और फलसफे की गुत्थियां सुलझाने की कोशिश की।
हिटलर ने दुनिया को बर्बादी की तरफ धकेला तो विटगेन्सटाइन उसे उबारने और खूबसूरत बनाने में जुटे थे।
एक ही जैसे पढ़ने वाले दो अलग अलग व्यक्तित्व। सोचती हूं कि शिक्षा का फर्ज क्या है। दोनों बच्चों ने एक ही छत के नीचे, एक ही शिक्षक से पढ़ना सीखा होगा, दुनिया को देखने समझने का एक जैसा नजरिया पाया होगा। लेकिन वो उनके जेहन को न बदल सका। यानी जेहन क्या सब शिक्षा से ऊपर की चीज है। महाभारत के पात्र धर्मराज युधिष्ठिर और अन्यायी दुर्योधन के शिक्षक भी तो एक ही थे।
गांधी ने प्लेटो के हवाले से कहा था कि शिक्षा हकीकत में खुद की तलाश है। यह बात डीयू वीसी दफ्तर के बाहर गांधी के बुत के नीचे खोद कर लिखी भी गई है।
हिटलर और विटगेन्सटाइन ने खुद को तलाशा और अपनी समझ पैदा की।
विटगेन्सटाइन ने एक बहुत ही खूबसूरत बात कही है वो यह कि ‘’आपको उस बारे में चुप रहना होगा जिसके बारे में आप बात नहीं कर सकते’’। शायद इस बात की आज के माहौल में सबसे ज्यादा जरुरत है।
(विटगेन्सटाइन के यूनीवर्सिटी के अध्यापक बर्टेंड रसेल थे। रसेल का नाम ज्यादा जाना पहचाना है। मैंने रसेल को जुबली कुमार यानी राजेंद्र कुमार की फिल्म अमन (1967) में दो मिनट के सीन में देखा था।
चित्र स्रोत - Philosophical Thoughts